बच्चेदानी में गांठ का आयुर्वेदिक इलाज?

बच्चेदानी में गांठ का आयुर्वेदिक इलाज?

बच्चेदानी में गांठ का आयुर्वेदिक इलाज?

आयुर्वेद बच्चेदानी में गांठ (फाइब्रॉएड/गर्भाशय अर्बुद) को “गर्भाशय ग्रंथि” या “गुल्म” के अंतर्गत मानता है, जो मुख्य रूप से वात, कफ और कपा दोषों के असंतुलन तथा आम (विषाक्त पदार्थों) के जमाव के कारण होता है, जो रक्त धाराओं में मिल जाता है और गर्भाशय में स्थानीयकृत हो जाता है।

आयुर्वेदिक उपचार के स्तर:

1. आहार विहार (जीवनशैली व आहार):

  • पाचन शक्ति को मजबूत करना: हल्का, गर्म व आसानी से पचने वाला भोजन।
  • अम पैदा करने वाले आहार से परहेज: प्रोसेस्ड फूड, भारी-चिकना भोजन, डेयरी उत्पाद (अधिक मात्रा में), ठंडे पेय, कच्ची सब्जियां।
  • पित्त शांत करने वाले आहार: मीठे, कड़वे व कसैले स्वाद वाले खाद्य पदार्थ।
  • लिवर डिटॉक्स पर फोकस: हरी पत्तेदार सब्जियां, कड़वे खाद्य पदार्थ (करेला), अंगूर, सेब।
  • नियमित भोजन समय: भूख लगने पर ही खाएं।

2. औषधीय जड़ी-बूटियाँ (चिकित्सक की देखरेख में):

  • कंठकारी अवलेह: बहुत प्रसिद्ध फॉर्मूलेशन, जो गांठ को कम करने के लिए विशेष रूप से बनाया गया है।
  • अशोक (सरका इंडिका): गर्भाशय को टॉन करती है, अत्यधिक रक्तस्राव को नियंत्रित करती है।
  • लोध्र (सिम्पलोकस रेसेमोसा): रक्तस्राव को रोकने में मदद करता है।
  • अश्वगंधा (विथानिया सोम्निफेरा): अनुकूलनकारी, हार्मोन संतुलन में सहायक, प्रतिरक्षा बढ़ाता है।
  • त्रिफला (आंवला, बहेड़ा, हरड़): शरीर को डिटॉक्सीफाई करता है और पाचन में सुधार करता है।
  • दारुहरिद्रा (बर्बेरिस अरिस्टेटा): सूजन-रोधी गुण, गर्भाशय के ऊतकों पर लाभकारी प्रभाव।
  • गुग्गुलु (कमीफोरा मुकुल): सफाई करने वाला, ऊतकों को डिटॉक्सीफाई करता है।

3. पंचकर्म चिकित्सा (विस्तृत डिटॉक्सिफिकेशन थेरेपी):

  • विरेचन (रेचक चिकित्सा): आंतों और यकृत की सफाई के लिए, अम को खत्म करने के लिए।
  • बस्ती (मेडिकेटेड एनिमा): विशेष रूप से गर्भाशय क्षेत्र को लक्षित करने वाली औषधीय एनिमा।
  • उत्तर बस्ती: गर्भाशय में सीधे औषधीय तेल लगाना (विशेषज्ञ द्वारा किया जाता है)।
  • रक्तमोक्षण (रक्त शोधन): विषाक्त पदार्थों को दूर करने के लिए रक्त की कुछ मात्रा निकालना (आधुनिक तरीके से)।

4. योग और ध्यान:

  • आसन: भुजंगासन, धनुरासन, पश्चिमोत्तानासन, वज्रासन, योग मुद्रा।
  • प्राणायाम: नाड़ी शोधन, भ्रामरी।
  • ध्यान: तनाव कम करने के लिए, जो हार्मोनल संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है।

बच्चेदानी में गांठ (फाइब्रॉएड) क्यों होती हैं? 

च्चेदानी में गांठ, जिसे चिकित्सकीय भाषा में यूटेराइन फाइब्रॉएड या लीओमायोमा कहते हैं, सामान्य (नॉन-कैंसरस) मांसपेशी और संयोजी ऊतक की वृद्धि है। इनके सटीक कारण अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन शोध से कुछ प्रमुख कारण और जोखिम कारक पता चले हैं:

1. हार्मोन का प्रभाव (मुख्य कारक)

  • एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन: ये दोनों हार्मोन (महिला प्रजनन हार्मोन) फाइब्रॉएड की वृद्धि को उत्तेजित करते हैं। फाइब्रॉएड में इन हार्मोनों के रिसेप्टर्स सामान्य गर्भाशय की मांसपेशियों की तुलना में अधिक होते हैं।
  • मेनोपॉज के बाद: एस्ट्रोजन का स्तर कम होने पर फाइब्रॉएड आमतौर पर सिकुड़ जाते हैं या गायब हो जाते हैं।

2. आनुवंशिक प्रवृत्ति

  • परिवार में (मां, बहन) फाइब्रॉएड का इतिहास होने पर इसकी संभावना बढ़ जाती है।
  • कुछ जीन्स में परिवर्तन भी कारण हो सकता है।

3. ग्रोथ फैक्टर्स

  • इंसुलिन जैसे ग्रोथ फैक्टर (IGF) शरीर में ऊतकों की मरम्मत को प्रभावित कर सकते हैं और फाइब्रॉएड की वृद्धि में भूमिका निभा सकते हैं।

4. एक्स्ट्रासेलुलर मैट्रिक्स (ECM)

  • फाइब्रॉएड में ECM (वह पदार्थ जो कोशिकाओं को आपस में जोड़ता है) अधिक मात्रा में बनता है, जिससे वे सख्त और गांठ जैसे हो जाते हैं।

जोखिम कारक:

  • उम्र: 30-50 वर्ष की आयु में आम।
  • मोटापा: वजन अधिक होने से एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ सकता है।
  • आहार: लाल मांस, हैम्बर्गर आदि अधिक खाने और हरी सब्जियां, फल कम खाने से जोखिम बढ़ सकता है।
  • मासिक धर्म की शुरुआत: कम उम्र में पीरियड्स शुरू होना।
  • गर्भनिरोधक गोलियाँ: कुछ अध्ययनों में शुरुआती उम्र में इनके सेवन से जोखिम बढ़ने की बात कही गई है।
  • शराब और धूम्रपान: कुछ शोधों में इन्हें भी जोखिम कारक माना गया है।
  • रंग: अफ्रीकी-अमेरिकी महिलाओं में फाइब्रॉएड होने की संभावना अधिक और उम्र कम होती है, साथ ही गांठें बड़ी और अधिक संख्या में हो सकती हैं।
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